तुम मुझे सुन रहे, तो तुम्हें सुनाई क्यों नहीं देता..!
तुम मुझे सुन रहे हो तो,सुनाई क्यूँ नहीं देता .?
कि कुछ इल्ज़ाम हैं मेरे सफ़ाई क्यूँ नहीं देता
कि मेरे हँसते हुए लहजे से धोखा खा रहे हो तुम
मेरा उतरा हुआ चेहरा दिखाई क्यूँ नहीं देता.?
नज़र-अंदाज़ कर रक्खा है दुनिया ने तुझे कब से
किसी दिन अपने होने की दुहाई क्यूँ नहीं देता .?
मैं तुझको देखने से किस लिए है वंचित ही रहता
खता करती हैं जब नज़रें तो दिखाई क्यूँ नहीं देता .?
कई लम्हें चुरा कर रख लिए तुमने अलग मुझ से
तू मुझको ज़िंदगी-भर की कमाई क्यूँ नहीं देता .?
मैं दोषी हूँ तुम अगर सोचते हो, तो
मुझे इस बात की ही सफाई क्यों नहीं देता .?
तुम नहीं हो अगर यादों, फरियादों में भी
तो न होने की गवाही क्यों नहीं देेेता .?
खुद को तकलीफ देते हो, मुझे ही तकलीफ होती है
तो क्यों होती है, इस बात की,सफाई क्यों नहीं देता.?
अपने-आप को ही घेर कर बैठै हो तुम कब से
अब अपने-आप से ख़ुद की रिहाई क्यूँ नहीं देता .?
मैं कब का डूब चुका तुझमें, अब अगर डूब
जाउँ भी पानी में, तो डूबने का भी असर
मुझ पर थोड़ा बहुत , मगर कम ही होगा .!
है मुझे इस बात की तकलीफ की हर जगह हो तुम
फिर खुली आंख से भी क्यों,
दिखाई क्यों नहीं देता ..?
मैं तुझ को जीत जाने की मुबारकबाद देता हूँ
तू मुझको हार जाने की बधाई क्यों नहीं देता..!
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