मैं वृक्ष ( कविता) - ZorbaBooks

मैं वृक्ष ( कविता)

 मैं वृक्ष मित्र तुम्हारा,

न करना स्वयं को विलग,

मुझ बिन जीवन की कल्पना व्यर्थ। 

पेड़ -पौधों का कर संरक्षण ,

उजड़ने न देना वन- उपवन। 

निज स्वार्थ के खातिर,

जंगलों का किया दोहन।

पंक्षी वृंद का उजाड़ घरौंदा,

शहरीकरण से खुद को जोड़ा।

गांव, पेड़, नदी, जंगल, पर्वत से दूर,

 मानव कितने हुए मजबूर।

पूर्वज से कुछ तो सीखा होता,

वृक्ष पूजनीय है गर समझा होता।

तुलसी आंगन की शोभा होती,

नीम पर पंक्षियों का कलरव होता।

 पादप का मोल तुम जानो,

प्रकृति की धरोहर को संभालो।

धरा के ऋण को उतारता चल, 

वृक्षारोपण का लेकर संकल्प। 

 

 

 

 

 

 

Comments are closed.

अर्चना सिंह जया
Uttar Pradesh