अधिक तीव्र प्रज्वलित किए आशा के दीप…..
अधिक तीव्र’ प्रज्वलित किए आशा के दीप”
अंधकार निराशा का अब मिट जाए’
प्रखर प्रकाश फैलेगा अंतस मन में’
जीवन में नभ सा विशाल हो जाऊँगा।
मुखरित हो हर बात कहूंगा, आगे कदम बढाऊंगा।
माली बन कर जीवन में उपवन शुभ्र लगाऊँगा।।
मानक बिंदु पर’ कसौटी कस डालूंगा स्वभाव का’
पथिक अकेला हूं तो क्या? धैर्य से कदम बढाऊंगा’
जीवन का पाऊँ आनंद, सागर से धैर्य मांग ले आऊँगा’
जीवंत भाव से हो ओतप्रोत, सागर सा हो जाऊँगा।
नभ मंडल में तारों की बरात, उनसे स्नेह बढाऊंगा।
माली बन कर जीवन में उपवन शुभ्र लगाऊँगा।।
निराधार उन उपबंधों से, सहज किनारा कर लूंगा’
मन इच्छित बातें, पथ पर पुष्प सुगंधित खिल जाए’
उल्लासित हो जीवन रस से झोली अपनी भर लूंगा’
मंजिल अभी दूर है, साथ कोई काफिला मिल जाए।
अंतस में मैले हुए भाव जो, उसमें आग घराऊँगा।
माली बन कर जीवन में उपवन शुभ्र लगाऊँगा।।
यह तो परिहास का विषय नहीं, तत्पर हूँ अब’
ज्ञान पुंज की ज्योति में गीता के पाठ पढूंगा’
क्षणिक द्वंद्व से अलग, केशव की बात रटूंगा’
भ्रमणाओं को कहीं दूर छोड़ आगे आज बढूंगा।
लालसा विघ्न करे’ क्षण को चित में नहीं बसाऊँगा।
माली बन कर जीवन में उपवन शुभ्र लगाऊँगा।।
मन उल्लासित हूं, बस आशाओं की बात करूंगा’
भ्रम के चीन्हित उपादान को तज कर आया हूं’
कहता हूं, पहना है मैंने ध्येय का चीर-नवीन वस्त्र’
यथा योग्य अवकार्य को इच्छित छवि बना लाया हूं।
कल तक कल्पित सपने, अब आँखें नहीं झपकाऊँगा।
माली बन कर जीवन में उपवन शुभ्र लगाऊँगा।।