भूमिका

चलित्तर एक छोटे से गाँव का रहने वाला था. वह एक सामान्य-सा लड़का था, लेकिन उसका दिल और दिमाग हमेशा बड़े सपने देखने में लगा रहता था. बचपन में वह सोचता था कि बड़ा होकर ‘कुछ बड़ा’ करेगा. उस ‘कुछ बड़ा’ में आखिर क्या-क्या है, इस बात पर वह सदैव मंथन करते रहता था. गाँव में उसके पास ज्यादा कुछ नहीं था, सिवाय उसकी कल्पनाओं के. वह बचपन से इस बात से भलीभाँति परिचित था कि “मानव-जीवन फूल की तरह है. फूल खिलता है और अपनी खुशबू बिखेर कर कुम्हला जाता है. कुम्हला कर वह नष्ट हो जाता है. किंतु नष्ट होने-होने तक वह चारों ओर के वातावरण को सुगंध या अच्छाई दे जाता है.”बचपन में चलित्तर मजदूरी करता था. बाल मजदूर था वह. उसका सबसे बड़ा सपना था कि वह शहर जाकर पढ़ाई करे, ताकि अपनी जिंदगी को एक नई दिशा दे सके. लेकिन उसके लिए सपनों को पूरा करना इतना आसान नहीं था. उसके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी. जब वह पाँच वर्ष का था तो उसके पिता का देहावसान हो गया था. उसके पिता राजमिस्त्री थे और राजमिस्त्री का काम करते-करते उन्हें ट्यूबरकुलोशिस (टीबी) हो गया था. उसकी माँ दूसरे के खेतों मे मजदूरी करती थी. मजदूरी करके घर आने के बाद वह घर के कामों में व्यस्त रहती थी. चलित्तर बिलकुल निरक्षर घर का था. पुश्तों से उसके घर में कोई पढ़ा-लिखा नहीं, सिवाय उसके सबसे बड़े भाई को छोड़कर. उसके सबसे बड़े भैया तीसरी कक्षा पास थे. जैसे जैसे चलित्तर आयु में बड़ा होता गया, वह अपनी मेहनत और लगन से अपने जीवन में कभी हार नहीं माएक दिन चलित्तर के गाँव में किसी दूसरे के घर के मेहमान आए हुए थे. वे गाँव के गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने का काम करते थे. गाँव के मेहमान ने चलित्तर को गाँव के ही प्राइमरी स्कूल में दाखिला कराने को कहा. उसकी माँ ने दाखिला करा दिया. यह चलित्तर के जीवन का पहला बड़ा कदम था, जो उसे उसकी मंजिल के करीब ले जाने वाला था.

फिर चलित्तर के शहर जाने की बात उसके लिए किसी सपना जैसा थी. उसकी माँ को तो शहर के विषय में कुछ भी पता नहीं था. अतः वह अपने बड़े भाइयों से शहर जाने की अनुमति मांगा, लेकिन माँ की चिंता और अपने पारिवारिक स्थिति को देखते हुए उसके बड़े भाइयों ने टालमटोल कर दिए. भाइयों की चुप्पी के बीच आखिरकार चलित्तर ने मजदूरी की अपनी सारी बचत जुटाई और शहर जाने के लिए तैयार हो गया. तब उसके भाइयों ने अनिच्छा से ही सही लेकिन अनुमति दे दी. शहर जाने से पूर्व उसकी अपढ़ माँ ने उसे सलाह दिया कि शहर जाकर वह कभी कोई गलत काम न करे. वह केवल मेहनत करे और मेहनत पर ही भरोसा करे, क्योंकि मेहनत करने से ज़िंदगी में अगर जीत नहीं होती है तो कभी हार भी नहीं होती है. जाते-जाते उसकी माँ ठेठ बज्जिका और खड़ी बोली के हिंदी मिश्रित वाणी में बोली, “हो बउआ! अप्पन जिनगी में इ बात तू गाँठ बाँध लिह कि मेहनत से ही आदमी की पहचान दुनिया में बनइ-छई. उहे आदमी के मन को सुख मिलइ-छई जो कर्मफल की चिंता के बगैर हर बनिहा से बनिहा काम करइ-छई. आत्मा की उन्नतिये भी ओकरे होइ-छई जो बुराई के बीच रहके भी अप्प्पन काम में अच्छाई पालइ-छई. याद रक्ख हो बउआ! कि संकलप करके आगे बढने वालों के मार्ग में बहुत सी बाधाएं आती हैं. लेकिन उन बाधाओं से घबराए बिना उसे आगे बढ़ते रहना चाहिए. ऐसा करने से जीवन में अभीप्सित सफलता एक-न-एक दिन अवश्य प्राप्त होती है. ज्यादा दिनों तक दुनिया की कोई भी बाधा किसी को आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती है. बाधाओं को देखकर वही आदमी रुकता और घबराता है जो सिर्फ बहानेबाजी करता है अथवा केवल ढकोसलेबाज होता है. अतः हो बउआ! तू न त कभी बहानेबाजी करिह अउर न ही कभी ढकोसलेबाज बनिह. हम्मर आशीर्वाद हओ, तू जा अप्पन जिनगी से खुदही लशहर में आकर चलित्तर ने, बच्चों को ट्यूशन देते हुए और रिक्शा चलाकर पैसा अर्जन करते हुए, अपनी पूरी ऊर्जा पढ़ाई में लगा दिया. लेकिन शहर की तेज़ रफ्तार और प्रतिस्पर्धा ने उसे कभी-कभी हतोत्साहित भी किया. वह खुद को अकेला महसूस करता था. लेकिन उसकी माँ की सलाह हमेशा उसके साथ रही.

माँ की हिदायत को ध्यान में रखते हुए चलित्तर ने अपनी पढ़ाई पूरी की और शहर के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से स्नातक (प्रतिष्ठा) तक शिक्षा प्राप्त की. स्नातक अंतिम वर्ष के परीक्षा के समय ही उसे एक सरकारी बैंक में नौकरी मिल गई. लेकिन वह हमेशा सोचा करता कि सिर्फ पैसे कमाकर अपना पेट पालना ही उसके जीवन का उद्देश्य नहीं है. वह चाहता था कि समाज के लिए कुछ बड़ा काम करे. वह यह भी चाहता था कि पूरी दुनिया के भले एवं असमर्थ लोगों को नवाचारी करने के लिए कुछ नया रास्ता बनाए. लेकिन वह इस बात से अच्छी तरह वाकिफ नहीं था कि बने बनाए राहों की अपेक्षा नई राहें बड़ी मुश्किल भरी होती हैं. इसी कारण उसे कदम-कदम पर बहुत से धोखे का सामना करना पड़ा.बड़े-बड़े लोगों के धोखेबाजी के बीच उसने अपनी एक बेदाग चारित्रिक छवि का निर्माण किया. उसने उसका नाम रखा “नव शुरुआत की नई दिशाएँ.” शुरुआत में उसके उद्देश्य को दबाने में बड़े-बड़े लोगों ने खूब अड़ंगा लगाया. लेकिन चलित्तर ने कभी हार नहीं माना. क्योंकि उसका उद्देश्य सही था. उसकी सफलता ने कुछ लोगों में नया उत्साह और विश्वास पैदा किया. बावजूद इसके उसकी सोच के विकास की राह सुखद पलों से भरी नहीं थी. उसकी चारित्रिक छवियाँ ज्यों-ज्यों विस्तार करती गई उसके साथ कई चुनौतियाँ भी सामने आने लगीं. आर्थिक संकट, संसाधनों की कमी, बहुत से लोगों का असहयोग और कई सारे नियमों की जटिलताएँ, ये सभी न केवल उसकी चारित्रिक छवियों की बाधाएँ थीं, बल्कि चलित्तर के मार्ग के लिए भी नव संघर्ष थे. एक दिन उसे एक गंभीर संकट का सामना करना पड़ा. किसी अमीर आदमी ने सरकार से उसके विषय में झूठी शिकायत कर दी. सरकार में दाग़दार सफेदपोशों की भी कमी नहीं होती है. पैसे से धमदार किंतु दागदार लोगों की कृपा से उसकी चारित्रिक छवि अंतिम कगार पर पहुँच गई. फिर भी वह घबराया नहीं, बल्कि एक योजना बनाई. उसने विभिन्न संगठनों और हृदय से संपन्न लोगों से संपर्क करना शुरू किया. उन सबका समर्थन हासिल करने के लिए उसने कई जमीनी प्रयास किए. उसकी मेहनत रंग लाई. धीरे-धीरे कई बेदागदार बड़े कंपनियों और समाजसेवियों ने चलित्तर की चारित्रिक छवि को समर्थन दिया. एक नई दिशा में उसकी प्रगति शुरू हुई. बुढ़ापे की ओर अग्रसर चलित्तर ने कई बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के साथ-साथ अपने लेखन के माध्यम से देश के अनपढ़, अपढ़ लोगों के लिए भिन्न-भिन्न कौशल बताने लगा. सबको आत्मनिर्भर होने के तरीके भी वह बतासमय बीतते गए. समय के साथ चलित्तर की चारित्रिक छवि न केवल शिक्षा बल्कि सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक बन गई. उसने और उसके विचारों से मिलते-जुलते उसके कुछ साथी ने लोगों को न केवल अकादमिक ज्ञान दिया, बल्कि जीवन जीने की सच्ची समझ को भी बताया. उससे जुड़ने वाले लोग अपने गाँव-समाज में बदलाव लाने के लिए प्रेरित होते थे. अब वह एक सफल नहीं बल्कि सशक्त नेतृत्वकर्ता बन चुका था. उसकी पहचान सिर्फ उसकी सफलता से नहीं, बल्कि उसकी निष्ठा और मेहनत से होने लगी. उसकी चारित्रिक छवि ने लोकनिष्ठा के माध्यम से लोगों में सशक्त दृष्टिकोण लाई, जबकि उसके लेखन ने कई पुस्तकों के माध्यम से लोगों में आत्मविश्वास और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण लाना शुरू किया. धीरे-धीरे गाँव-समाज और शहर के लोग उससे जुड़ने के लिए उत्सुक रहने लगे. उसका सपना अब हकीकत में बदल चुका था. लेकिन आगे बढ़ने के बावजूद उसने कभी अपनी जड़ें नहीं छोड़ीं.किसानों, व्यावसायियों तथा अन्य लोगों के सामने चलित्तर ने खुद को आच्छा काम करने वाले हीरो या नेता के रूप में नहीं प्रस्तुत किया बल्कि एक सामान्य आदमी के रूप मे प्रस्तुत किया. जब उससे कोई कुछ पूछता तो वह कहता, “मैं तो साधारण व्यक्ति हूँ. मैं इस बात में विश्वास करता हूँ कि सच्ची कोशिश से समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है.” उसके इसी सोच के कारण उसकी चारित्रिक छवि सबके लिए वैश्विक प्रेरणा बन चुकी थी. अंत अंत तक अपने लेखन के प्रति भी उसका जुनून और समर्पण कभी कम नहीं हुआ. उसके लेखन ने लोगों को मजबूत किया जो विश्व में उन्नत विचार के सक्षम नेतृत्व संरचना तैयार करने को काफी था. पूरे विश्व के लोगों के लिए उसका लेखन एक ब्रांड की तरह था, फिर भी, इस बात को उसने कभी महिमामंडित नहीं किया.

चलित्तर खुद के लिए नहीं जिता था. उसके लिए जीवन का असली उद्देश्य केवल खुद को सफल बनाना नहीं था, बल्कि अपने द्वारा किए गए कामों से संसार में एक स्थायी विरासत छोड़ना था. उसने अपने साथ जुडने वाले लोगों से यह वादा लिया कि वे कभी भी अपने लक्ष्यों से भटकेंगे नहीं. वैश्विक मानव-समाज और संस्कृति के बदलाव को लेकर वह काफी गंभीर था, तभी उसने संचार और सहयोग के सिद्धान्त पर काम करना शुरू किया. लोगों के बीच संचार और सहयोग में उसने आधुनिक तकनीक और डिजिटलीकरण का उपयोग किया. उसने स्मार्टफोन, टैबलेट्स, ई-लर्निंग प्लेटफार्मों, और कृत्रिम बुद्धिमता युक्त प्लेटफार्मों के माध्यम से समाज के सभी वर्गों तक पहुँचने की योजना बनाई और उसमें सफल भी रहा. उसकी हर गतिविधि आधुनिक सॉफ्टवेयर एवं तकनीक वाले नवाचारों पर केंद्रित थी. जीवन के मूलभूत समस्याओं का सामना कर रहे लोगों में अपने सॉफ्टवेयरिक बातों से उसने नए-नए जज्बे दिए.

इसी क्रम में चलित्तर को इस संसार में हमेशा आलोक भरे नयनों से देखने वाली जीवन साथी भी मिली, जिसका नाम वसुधा था. वसुधा सॉफ्टवेयर की ज्ञाता थी और उसका वैज्ञानिक ज्ञान जमीन से जुड़े रहने का संकेत देता है. धरती जैसी सहनशील नारी का सान्निध्य जब चलित्तर को मिला तब वह और खिल उठा. उससे उसे गजब का तुष्टि रत्न प्राप्त हुआ. कोई संतान न होने के बावजूद उसे वसुधा के सान्निध्य से दुनिया की सारी थाह मिल गई. वसुधा के संग वह जीवन के तप्त अनुभव को टटोल कर दुनिया में चहुँओर दिव्य आलोक प्रदान किया. अंततः वह और वसुधा दोनों इस लोक को छोड़कर पुरसुकून (शांतिमय) जिंदगी की तलाश में बड़े ही सुकून से अभिगमन किया.

(2)

यह उपन्यास महिलाओं और पुरुषों के संघर्षपूर्ण जीवन का मुखरित दस्तावेज है. संघर्ष ही वह चीज है जो प्रकृति के साथ मिलकर वक्त की छाननी में हमारे कर्मों को निथार कर पूरे विश्व के सामने प्रस्तुत करता है.

भारत की आंचलिक सभ्यता एवं संस्कृति को तरजीह देते हुए पूरे विश्व के महिलाओं की स्थिति को इस उपन्यास का आधार बनाया गया है. महिलाएं अब विश्व का हर कार्य करने को उत्सुक हैं, हर कठिन से कठिन कार्य वे करती भी हैं, तभी इस उपन्यास की बुनियाद में खोजी प्रवृत्तियों की महिलाएं हैं. इस दुनिया में जननियां अर्थात् महिलाएं अपूर्व सामर्थ्य से युक्त होती हैं, लोगों को आपस में जोड़कर रखने की क्षमता सिर्फ और सिर्फ महिलाओं में पाई जाती है, तभी वे इस संसार में ईश्वर की विरासत मानी जाती हैं. संप्रति पूरे विश्व की महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार हुआ है. इक्कीसवीं शताब्दी में महिलाएं खुलकर मर्दों के साथ हरेक प्रतिस्पर्धा में भाग ले रही हैं. वे बाईसवीं शदी में अपने कौशलपूर्ण उत्साह के साथ बहुरंगी पताकाएं फहराने को भी तैयार हैं. बाईसवीं और तेईसवीं शताब्दी में महिलाएं अपने अनिंद्य पावन सौंदर्य की उज्ज्वल शोभा बिखेरेंगी तथा अपने अप्रतिम तकनीक-ज्ञान से धरा-भाग्य की सराहना करती नजर आयेंगी. वे अपने अंग-अंग से न केवल दिव्य कांति विकीर्ण करेंगी बल्कि तेजोमय मस्तिष्क से हर विकास-जन्य क्लांतियाँ भी छांटती नजर आयेंगी. आने वाले शताब्दी में उनके यौवन का प्रकाश भी मलिन नहीं होने वाला है. उनके अस्पर्शित धरा सौंदर्य से पराभूत होकर धरती का हर वैभव दास बनकर उनका अनुगत हो जाएगा.

जहाँ तक इस उपन्यास की बात की जाए तो यह एक गहन और विचारोत्तेजक उपन्यास है. सॉफ्टवेयर एवं नए-नए कृत्रिम बुद्धिमता ऐप्स वाले आधुनिक युग में यह उपन्यास महिलाओं की सर्वांगीण स्थिति और उसकी जिंदगी के प्रश्नों की पहेली को गहराई से उजागर करता है. जैसे-जैसे औपन्यासिक कहानी इसके विभिन्न भागों से होकर गुजरती है, वैसे-वैसे महिलाओं की जिंदगी की हर सच्चाई सामने आती है. यह विभिन्न प्रकार के पात्रों के जीवन को एक साथ बुनती है जो जीवन के अर्थ और जिंदगी की समझ के लिए अपनी व्यक्तिगत खोज से प्रेरित होते हैं. इसके प्रधान पात्र चलित्तर और वसुधा है. दोनों प्रतिभाशाली हैं और वे समाज से अच्छाई के रहस्यमय तरीके से गायब होने से काफी परेशान हैं. मानव मन की जटिलताओं और उद्देश्य की मायावी अवधारणा को उजागर करने के लिए दोनों अपनी-अपनी कर्म-यात्रा पर निकलते हैं. उसी कर्म-यात्रा के बहाने आपस में गुंथी हुई कहानियों की एक श्रृंखला इस उपन्यास में बुनी गई है. इसमें मन के विज्ञान से ओतप्रोत वैज्ञानिक रहस्य है, आत्म-संदेह से जूझ रहा भावुक रोमांच है. और आत्मज्ञान की तलाश करता दर्शन भी है. इस उपन्यास का प्रत्येक पात्र अपने अनूठे परिप्रेक्ष्य और कहानी को कैनवास पर लाता है. इसके कैनवास आदमी के अस्तित्व की शाश्वत क्वेरी में विविध अंतर्दृष्टि प्रदान करता है.

“पाखो” (उपन्यास) इस मायने में सबसे अलग हटकर होगा कि यह विविध विकासात्मक कर्म में लीन महिलाओं की पहचान करता है. यह आधुनिक ज्ञान की खोज करने के साथ-साथ विविध विषयों की पड़ताल करता है. यह आधुनिक महिलाओं को उनके अपने जीवन के समस्त सार पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित करता है. इसमें रोमांचक चरमोत्कर्ष के साथ विशाल ब्रह्मांड में महिलाओं के योगदान की गाथा है. यह उपन्यास हरेक महिला को उनके स्वयं के उद्देश्य पर गहनता से विचार करने की चुनौती देता है.

अपने जटिल कथानक, समृद्ध रूप से विकसित पात्रों और मानवीय प्रेरणाओं के पीछे “क्या, क्यों, कहाँ और कैसे” की सम्मोहक खोज के साथ पुरसुकून जिंदगी की चाह वाले ‘पाखो’ हर वर्ग के पाठक के लिए दिलचस्प होगा. महिला-जीवन के रहस्यों पर गहराई से विचार करने के लिए यह उपन्यास पूरी पृथ्वी पर सुंदर विचारों को आमंत्रित करेगा. यह उपन्यास महिलाओं को गरिमा और शालीनता से जीने के अधिकार के विषय में गहन चर्चा करता है. महिलाओं की जुबानी और जज़्बाती सुरक्षा पर भी यह गहन परिचर्चा करता है. इस उपन्यास में धरती पर चहलक़दमी करते आदमी के मानवीय संरचना का ज्योमेट्रिकल एनालिसिस है. अगर किसी उपन्यास के ज्यामितीय विश्लेषण में उसकी लंबी औपन्यासिक कहानी के कथानक, पात्रों और विषयों को क्वांटमिक, अर्थात् पदार्थ और उसकी ऊर्जा आधारित तरीके से ज्यामितीय आकृतियों और पैटर्नों के माध्यम से व्याख्यायित कर दिया जाए तो उसकी कथा संरचना आदमी के जटिल सोच की आकृतियों से इतर हो जाती है. उपन्यास के माध्यम से किसी व्यक्ति के ज्यामितीय विश्लेषण में उसकी देह के विविध अंगों की अंतर्निहित अवधारणाओं को उजागर करना मुश्किल नहीं तो आसान भी नहीं है.

मेरा पूर्ण विश्वास है कि आधुनिक तकनीक संपन्न वैज्ञानिक युग में यह उपन्यास हर वर्ग के पाठकों के लिए उपयोगी साबित होगा; क्योंकि, हर व्यक्ति अपने-अपने वैकासिक संसाधनों के साथ सुकून की जिंदगी जीना चाहता है. 

                                                                जय हिंद…

 

तिथि : 14 जून 2025                                                                                                ~ गंवरु प्रमोद (प्रमोद कुमार)

pramod001975@gmail.com

वर्तमान पता : ए-270, गली नं.30,

बरौला, सैक्टर-49 नोएडा,

जिला – गौतमबुध नगर (उत्तर प्रदेश)


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गंवरु प्रमोद (Ganvru Pramod)
Uttar Pradesh