शिक्षक और शिक्षा की दशा !
ये बात थोड़ी अटपटी है मगर ठीक से सोचें तो सही है! बिहार में सरकारी शिक्षक बनना मतलब भगवान का साक्षात दर्शन करने के बराबर है!
आइए समझते हैं इसे विस्तार से सबसे पहले तो एक शिक्षक बनने के लिए आपको एकेडमिक यथा दसवीं, बारहवीं, स्नातक आदि तथा प्रशिक्षण लेना अनिवार्य है! लगे लोग भागदौड़ करने डीएल एड (डिप्लोमा इन एलिमेंटरी एजुकेशन) , बीएड(बेचलर आॅफ एजुकेशन) के लिए कुछ ने बिहार के विभिन्न संस्थान से किया या यूँ कहें हमारे मंत्री और उनके रिश्तेदारों के काॅलेज को चुना ,क्योंकि अधिकतर संस्थान उन्हीं के हैं! प्राइवेट मतलब खाना पूर्ति; भवन तो बडे़ लेकिन न कोई ढंग के शिक्षक और न ही कोई सुविधा साधन ! अभी फिलहाल बिहार में कंबाइंड प्रवेश परीक्षा माध्यम है ; किसी संस्थान में प्रवेश का जो काबिले तारीफ है! बाकी बचे लोग हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल , मध्यप्रदेश आदि से डिग्रियाँ खरीद ली वो भी इसलिए की नंबर अच्छे मिलेंगें, तो बढिया होगा! अब समझने बाली बात ये है की जब छात्राध्यापक प्रशिक्षण लेंगे नहीं मतलब काॅलेज की कक्षा में उपस्थित होंगे नहीं तो प्रशिक्षण कैसे हुआ/होगा! अब आते हैं की अगर हमने कहीं रहकर प्रशिक्षण लिया भी तो पाया की जो अपने आप को प्रोफेसर बता रहें प्रशिक्षण काॅलेज का, वो खुद ही प्रशिक्षित नहीं हैं, नतीजतन सभी का प्रशिक्षण अधूरा ! उन्होंने जैसे तैसे डिग्रियाँ हासिल की, कुछ को छोड़ कर और अगर आपने काॅलेज में आवाज उठा दी तो फिर समझ लो आपके प्रेक्टिकम के मार्क्स गये ! मेरे साथ हो चुका है! अब समस्या ये है की कोई छात्राध्यापक/छात्राध्यापिका बोलना नहीं चाहता/चाहती क्योंकि अच्छे अंक नहीं आएंगे और अंक नहीं आए तो फिर बिहार में शिक्षक तो बन नहीं सकते , क्योंकि यहाँ मेधा अंक में एकेडमी और प्रशिक्षण अंक भी जोड़ा जाता है, जोकि गलत है क्योंकि आप एकेडमी और प्रशिक्षण के थ्योरी के मार्क्स लेकर अच्छा शिक्षक नहीं बन सकते! मेरे अनुसार शिक्षक भर्ती टीईटी अंक के आधार एवं साक्षात्कार पर एवं उनके द्वारा आयोजित परीक्षा के आधार पर होनी चाहिए ! जैसे केवीएस, एनवीएस, नेतरहाट एवं अन्य राज्यों के विधालयों के शिक्षक बनने के लिए होती है! उदाहरण – पूर्वोतर भारत! अहम बात ये की काॅलेज प्रशिक्षण के दौरान आपको कठिन प्रशिक्षण की जरूरत है ; जैसे बच्चों को अधिकतर पर्यावरण से जोड़ कर तथा कोकरिकुलम क्रिया के साथ पढाना ! जैसे नाटक, खेल, मानचित्र, सामूहिक प्रतिभागिता, स्पेशल चाइल्ड के लिए ब्रेल लिपि , कम्प्यूटर का ज्ञान और सबसे ज्यादा धैर्य का होना ; साथ ही साथ सहज एवं सरल होना जैसे गुण शामिल हैं, जोकि आज के परिपेक्ष्य में देश के कुछ चुनिंदा संस्थान ही करवा पा रहें हैं! अब सवाल ये है की जब इन मानको को कोई काॅलेज नहीं मानता और मानकों को पूरी नहीं करता तो उनके काॅलेज की मान्यता रद्द क्यों नहीं होना चाहिए? क्या इस तरह के प्रशिक्षण ले लेने से और इनके शिक्षक बन जाने से हमारे देश के बच्चें अच्छे और गुणी बन पाएंगे? मैं कहता हूँ असंभव!
इसके लिए सरकार को निगरानी करनी होगी और बिना मानकों के काॅलेजों की मान्यता रद्द करनी चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य है ऐसा होगा नहीं क्योंकि काॅलेज है किनका? हमारे प्रतिनिधि का फिर तो क्या ही कहने!
जैसे तैसे दो सालों में डिग्री मिल गई लेकिन डिग्री मिलने के बाद पता चला काॅम्बिनेसन सब्जेक्ट तो कई लोगों का है ही नहीं! जैसे किसी ने स्नातक में गृह विज्ञान ले रखा है और सब्सिडीयरी ( ऐच्छिक ) में मनोविज्ञान, संगीत ले रखा है तो अब इनका चयन टीजीटी के लिए नहीं होगा ,ये सिर्फ प्राईमरी स्कूल के टीचर ही बनेगें और अगर इन्होंने बीएड की है तो शायद ही ये शिक्षक बन पाएंगे हालांकि अभी छ: महीने के सेतु कोर्स के साथ अनुमति है लेकिन भविष्य की कोई गारंटी नहीं, मतलब इनकी डिग्री, पैसा, समय बर्बाद क्योंकि प्राइवेट काॅलेज वाले ये कभी बताएंगे नहीं और ये सब बातें पहले बहुत कम लोगों को मालूम होती है! फिलहाल कला शिक्षक के लिए अर्हता इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र में से कोई दो सब्जेक्ट और विज्ञान शिक्षक के लिए भौतिक विज्ञान रसायन शास्त्र एवं गणित में से कोई दो विषय का आपके स्नातक में होना अनिवार्य है !
कारण ये है की इन सब का जड़ सरकारी उदासीनता का होना !
उपाय- अगर आप अच्छा शिक्षक चाहते हैं तो खुली प्रतियोगिता होनी चाहिए ! अंक के आधार पर चयन हो और उनका प्रशिक्षण सरकार स्वयं कराएं एवं टीईटी आयोजित कर उनमें सफल छात्रों को सीधे सरकारी विद्यालयों में भेंजा जाय ! लेकिन समस्या ये है की जो नीति निर्माता हैं इनकी संस्थान बंद हो जाएगी ,यहीं कारण है की विभिन्न नियमों का हवाला देकर ये काम करना नहीं चाहती सरकार, जो कि दुःखद है !
राहुल किरण ( शिक्षा में स्नातक)
सीटेट, एपीटेट, रीट, AWES , UPSSSC pre pass (बेगूसराय)
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