चलो चलें
चलो चले पंखों की उस उड़ान में
मेहनतकश करेंगे ईंट को मकां में
जाने अंखियां कहां है रोई
सागर ने अपनी लहरें है खोई
झिलमिल तारों से परे
तेरे पंखों की उड़ान है सोई।
चलो चले नींद से जागे
तेज़ में रवि से भी आगे
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता के
अंधेरे से चल उजाले मांगे।
अपनी आंखों को विराम दो
पंखों को एक अब इनाम दो
उड़ान की 21वीं शताब्दी में
हमारी भारत मां का सम्मान हो।
अखबार बेचने से लेकर अब्दुल कलाम तक
ठोकर से होकर ” मिसाइल मैन” सलाम तक
अब गिनना न भूले दुनिया हमें
लहरों को पार कर,एक ऊंची उड़ान तक
चलो चले पंखों की उस उड़ान में
मेहनतकश करेंगे ईंट को मकान में ।।
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