मोहब्बत की राह
ख्वाब तुम्हारे मेरी आँखों में सजते हैं,
नित साँझ सवेरे काव्योदय से अंतर्मन को छूते हैं।
तुम्हारे सौंदर्य की लौ शब्द के दीप जलाए रखते,
मोहब्बत-चाहत जीवन की राह को जगमगाए रखते।
ख्वाब हो या कोई हकीक़त, हम समझ नहीं पाते
पर स्वप्न सुनहरे आँखों से उतरकर हिय को छूते।
बसंत ऋतु में प्रेम परिमल चहुॅंदिश है छाया,
मात्र प्रेम दिवस पर ही नहीं, प्रेम सदा मन को भाया।
स्नेह-प्रेम रस की डोर में अच्छा लगता बंधना,
नोंक-झोंक में भी प्यार, कुछ खट्टे-मीठे होते तकरार
जीवन का होता है प्यार-मोहब्बत ही आधार।
चंदा और चकोर का होता अनोखा प्यार,
इकदूजे की खातिर सदा रखना सद्व्यवहार,
ढाई अक्षर में सच मानो तो अद्भुत छुपा है सार।
* अर्चना सिंह जया,गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
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