Rishte/रिश्ते - ZorbaBooks

Rishte/रिश्ते

रिश्ते कागज़ की तरह हुआ करते है,

उसपे जो लिखना है लिख सकते है।

कमी आ गयी है रिश्तों में नई बात नही है,

इसे हम अपनी आंखों से देख सकते है।

पड़ोसी के झगड़े में चुप रहना भी ठीक नही,

हम एक का घर तो टूटने से रोक सकते है।

बुज़ुर्गी सब को आनी है ये बात भूल गए शायद,

किसी बूढ़े का मज़ाक उड़ाने से रोक सकते है।

ज़रूरी नही की पढ़ा लिखा ही हो हमेशा समझदार,

तुम सीखना चाहो तो आज़ाद किसी से भी सिख सकते है।

 


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AZAD MADRE