जीवन चंचल" चले अनुमान सहारे...... - ZorbaBooks

जीवन चंचल” चले अनुमान सहारे……

जीवन चंचल” चले अनुमान सहारे’

सुख -दुःख दो प्रिय, इसके बने किनारे’

भ्रम बीते मन व्यर्थ बनोगे, पछताओगे’

प्रति पल काल का जो लगा है पहरा प्यारे।

चिंतन कर मन चेतन हो श्री राम भजो रे।।२

माया के भूले, मीठी लगे जगत की रीति रे’

मन भ्रम में डुबे लोभ के ढोल पीटते प्यारे’

यहां न कोई अपना साथी, छोड़ चलेंगे सारे’

इक दिन तेरा भ्रम टूटेगा, हो जाओ नाम सहारे।

राम नाम रस मधुर लगे, मन अविराम भजो रे।।२

मन के भूले, भ्रम तेरा’ जग अपना लगे बसेरा’

क्षण में रुके सांस जो तेरी, रह पाए न तेरा’

काल कराल जो तुम्हें बुलाए, छोड़ना होगा डेरा’

समझो मन’ जग नीमित जीवन के है सारे।

सुख का सागर पाने को, सीता-राम भजो रे।।२

मन क्लेश में डुबे तुम, चंचल बने हो जब से’

लाभ-हानि का मन में माला नित फेर रहे हो’

अपना-पन के द्वंद्व फंसे, दुविधा हेर रहे हो’

तेरे मन में जो ग्रहीत हुआ है, छूटो इससे प्यारे।

राम नाम रस अनमोल सुधा, रघुवर नाम भजो रे।।२

चिन्ता मन की डाकिनी बन, बैठी चिता सजाए’

हाड़-मांस का बना है पुतला, अपना आग लगाए’

देख सकोगे नहीं नजर से, तन धूं-धूं कर जल जाए’

भव बंधन के जादू से बल लो, आओ नाम सहारे।

जीवन सागर सुख में बदले, प्रिय सुखधाम भजो रे।।

मन रे” झूठे बैर भूला कर के, सीता-राम भजो रे’

जीवन रस पाने को प्रेमी, बस हरि नाम भजो रे’

जिह्वा का सार्थक फल हो, राधे-श्याम भजो रे’

श्री राम है भव सागर के माझी, शरणागत हो प्यारे।

चरणों में ध्यान लगाए मन को, अविराम भजो रे।।

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मदन मोहन'मैत्रेय'