मेरे गांव का स्कूल
मेरे गांव का स्कूल*
वह स्कूल के दोनों को जब लिखने बैठता हूं जाने कहां में खो जाता हूं सोच सोच उन बातों को फिर मैं मुग्ध हो जाता हूं वह आम के बगीचे और बगीचे में पढ़ते हम मास्टर जी की छड़ी और छड़ी का गम
गांव में स्कूल हमारा तब कान्वेंट का उतना नहीं जमाना था अध्यापक को गुरु कहते सर मैडम का नहीं जमाना थाजीवंत थी जिंदगी हमारे मुंह पर बढ़ा नहीं कोई ताला था
दंड देने का तरीका मानो बहुत ही ज्यादा निराला था 15 मिनट तक मुर्गा बनाना और सौ उठक बैठक का विधान पुराना था
उस अध्यापक जी से पटती हमारी जो हा में हा मिलते थे बाकी जो मरने वाले थे वह दुश्मन हो जाते थे
स्कूल के बगीचे में आम का वृक्ष ,वृक्ष पर लगे आम जब बहे पुरवा आम के लिए धड़ाम । सारी हरकत देखते हम एक इशारों की देरी रहती गुरुदेव एक नजर घूमें तो सारे आप हमारे रहते , पर सारी इस घटना में गुरुदेव की गद्दारी रहती प्रिंसिपल के पूछने पर सारी गलती हमारी रहती , फिर उसी वृक्ष पर हमें उल्टा लटकाया जाता और लटकने के बाद हमें जीवन का सारा आनंद आ जाता*