दीवाना
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हर व्यक्ति को उत्प्रेरणा और प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है । पारितोषिक और प्रशंसा ये काम बहुत अच्छी तरह करते हैं । इनमें प्रशंसा ज्यादा महत्व पूर्ण है । अच्छे कार्य और प्रयास की प्रशंसा की एक भावनात्मक आवश्यकता होती है । झूठी प्रशंसा या अति प्रशंसा करना किसी को मूर्ख बनाने जैसा होता है ।
मनीष बचपन से ही गंभीर और मितभाषी था । यहाँ तक की वह घंटों चुप रह सकता था और कई दिनों बिना मुस्कराये तथा हफ्तों बिना हँसे रह सकता था । किसी को उसके व्यवहार में कोई त्रुटि नज़र नहीं आती थी उल्टे उसकी हर जगह प्रशंसा होती थी ।
शायद तत्कालीन मान्यता ऐसी थी कि लोग गाम्भीर्य को अधिक सम्माननीय मानते थे ।
मनीष जिनके यहाँ भी घर के बड़ों के साथ जाता थोड़ी देर में उस घर के बच्चों की एक आध बार तो डांट पड़ ही जाती और नसीहत मिल जाती ।
“क्या तुम लोग शैतानी करते रहते हो । ये भी तो बच्चा है । कितना शांति से बैठा है।”
मनीष के घर के लोग भी उसकी तारीफ करते रहते । मनीष बड़े घाटे में रहा । इस प्रशंसा के चलते वह न हम उम्र बच्चों की तरह चीख चिल्ला पाया न किसी चीज़ की जिद कर पाया ।
मनीष की उम्र बढ़ती गयी लेकिन स्वभाव नहीं बदला।
अब वो डिग्री कालेज में एकोनोमिक्स का छात्र था । अच्छे छात्रों में गिनती थी । कॉलेज में को- एजूकेशन थी ।
कॉलेज का यौवन और ऊर्जा से ओतप्रोत वातावरण सब को किसी न किसी सीमा तक प्रभावित करता है ।
मनीष के कुछ नये दोस्त बन गये थे । जिनमें लड़के लड़कियां दोनों शामिल थे ।
मनीष और मुक्ता एक दूसरे की तरफ आकर्षित थे । लेकिन मुक्ता द्विविधा मे थी।
मुक्ता ने एक दिन ग्रुप की अपनी सहेली शालू से पूछा, “ शालू तेरे हिसाब से मनीष कैसा लड़का है ।”
मुक्ता ने कहा , “अच्छा भला तो है । फिर जितना तुम उसे जानती हो उससे ज्यादा तो मैं भी नहीं जानती ।”
शालू ने मज़ाक में कहा, “क्यों किसी की शादी की बात चलाना है? तेरे लिये बात करना हो तो मै कर सकती हूँ।”
मुक्ता बोली, “मेरी छोड़ तू अपनी सुना। मंजीत आजकल आ क्यों नहीं रहा?”
शालू बोली, “मुक्ता तू भी अजीब है । सबको मालूम है वह इंटरयूनिवर्सिटी गेम्स के लिये दिल्ली गया है ।”
इसी बीच वहाँ मनीष आ गया। मुक्ता ओर सीमा को देखकर ठहर गया ।
“हैलो मनीष, कैसे हो?” शालू ने प्रश्न किया।
“हैलो, मैं ठीक हूँ । थैंक्स,” मनीष बोला ।
मनीष ने मुक्ता से भी कहा, “हैलो।“
मुक्ता ने जवाब में कहा, “हैलो।”
“क्लास में चलें क्या? समय हो रहा है,” मनीष ने पूछा ।
शालू मज़ाक के मूड में आ गयी, “मनीष मुक्ता को तुमसे शिकायत है ।“
मुक्ता और मनीष दोनों चौंके।
मनीष ने पूछा, “ क्या?”
शालू ने हँसते हुए कहा, “तुम क्लास के अलावा कहीं और चलने की बात ही नहीं करते ।“
मनीष के चेहरे की गंभीरता बढ़ गयी और माथे पर बल पड़ गये ।
उसने अपने उसी अंदाज़ में पूछा, “ कहीं और ?कहाँ ?”
शालू ने कहा, “ कोई और जगह न सही कम से कम कॉलेज की कैंटीन का ही दर्शन कर लिया करो ।
मनीष ने कहा, “हम लोग लंच टाइम में चल सकते हैं ।”
लंच टाइम में वे तीनों कैंटीन में पहुंचे । केंटीन मैं जाकर शालू बोली, “सॉरी आज तुम लोग खाओ पियो मुझे एक बहुत जरूरी काम याद आ गया है । मुझे जाना पड़ेगा,”
मुक्ता बोली, “हमलोग भी चलें साथ में । कोई मदद की जरूरत हो !”
शालू बोली नहीं ऐसी कोई बात नहीं । अगर होगी तो जरूर बताऊँगी ।
शालू जानबूझ कर उनदोनों को अकेले छोड़ कर गयी थी ।
मुक्ता ने बात शुरू की, “ ये हमारा इस कॉलेज का आखरी वर्ष है । समय कितनी जल्दी बीत गया ।
मनीष बड़ी मुश्किल से बोला, “हाँ ।”
मुक्ता ने फिर कहा, “हमलोग फिर न जाने कहाँ होंगे ?”
इस बीच खाना आ गया । लंच का निश्चित मेनू था इसलिए अलग से ऑर्डर करने की जरूरत नहीं थी ।
मनीष खाने में व्यस्त हो गया।
मनीष ने मुक्ता की बात को सुना भी था और समझा भी था बोलने लायक बहुत सी बातें उसके दिमाग में घुमड़ रही थी लेकिन बोलने के लिए उचित शब्द उसकी पकड़ में नहीं आ रहे थे ।
मुक्ता ने भी खाना शुरू कर दिया था ।
बहुत प्रयास के बाद मनीष के मुंह से निकला, “आपने सही कहा।”
इतनी देर के बाद जवाब आया कि मुक्ता को पूछना पड़ा , “क्या ?”
मनीष ने कहा , “यही कि कॉलेज के बाद पता नहीं कौन कहाँ जायेगा।
दोनों लोग खाना खतम कर चुके थे । वे दोनों हाथ धोकर काउंटर पर गये । मनीष ने पैसे दिये और दोनों बाहर आ गये । मनीष ने क्लास में चलने को कहा तो मुक्ता ने मना कर दिया । मनीष अकेला ही क्लास में चला गया । मुक्ता का मूड खराब हो गया था । वह सीधा घर चली गयी ।
केंटीन में जहां मुक्ता का मनीष से मोह भंग हुआ था या कहे अरमानों पर पानी फिरा था,वहीं मनीष के अरमान जागे थे ।
उस दिन के बाद से उसके हृदय में मुक्ता का विशिष्ट स्थान बन गया था । उस दिन के बाद से उसके हृदय में मुक्ता का विशिष्ट स्थान बन गया था । वह अपनी कल्पना में उससे सारी बातें कर लेता किन्तु मुक्ता से प्रत्यक्ष बोलने के लिये न तो उचित शब्द मिलते थे और न साहस । सत्र खतम भी हो गया । परीक्षाएँ हो गयी। सब अपने अपने रास्ते हो लिये।
मुक्ता मनीष से विदा लेने आयी थी। समान्य शिष्टाचार की बातें होती रहीं। उसमें भी मनीष हाँ, हूँ से काम चलाता रहा। इसके बाद जब वो जाने लगी मनीष ने पीछे से उसे पुकारा लेकिन उसकी आवाज गले में घुट कर रह गयी । मुक्ता चली गयी।
अब वह अपनी आवाज सुनने के लिये खुद से ही ज़ोर ज़ोर से बोलकर बातें करता है। लोग कहते हैं वह दीवाना हो गया है ।