बनाते हुए चलूं, राह में सपनों को’
बनाते हुए चलूं, राह में सपनों को’
सजाते हुए अभिलाषा के मोतियों से’
बनाते हुए हर्ष की अटारियां ऊँची’
चकित नहीं होऊँ, क्षणिक चमत्कार से
जीवन’ क्षणिक दुविधा से होऊँ नहीं दंग।।
सोचता हूं फिर से, सजीले उम्मीदों के’
नीले आसमान’ में परवाज कर लूं’
फिर जीत जाने को’ आगाज कर लूं’
उत्साहित हो हौसलों के’ फैलाऊँ पंख’
जिन्दगी’ ढलना मुझे’ तुम्हारे रंग।।
बेबाक बन कर’ कह सकूं खुद से’
हर बात को’ जिससे रखता राबता’
हौसलों से खुद को बना लूं’ अजेय’
बनूँ संघर्ष की भट्टी से, मील का पत्थर’
क्षणिक आवेश से’ होऊँ कभी न तंग।।
इच्छाओं के सीमित भावों से कुछ अलग’
अब जानने को’ खुद को, बनाऊँ तस्वीर’
मेहनत के कलम से’ हाथ में खींच लूं लकीर’
तरकीब आजमाऊँ और जग जाये तकदीर’
अलहदा’ उमंग लिये’ जीवन के संग।।
रिक्तता की खाई को’ स्नेह से पाट कर’
सोचता हूं, अब’ पथ पर कदम बढाता चलूं’
खुद को समझ लूं, तरकीब आजमाता चलूं
तनहाइयां अब नहीं बेचैन कर पाये, मन को’
ऐसा, समुचित भावनाओं का सीख लूं ढंग।।
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