श्री चरणों की अभिलाष लगी - ZorbaBooks

श्री चरणों की अभिलाष लगी

श्री चरणों की अभिलाषा लगी, मेरे भाग जगे जो जीवन की ।

अश्रु भरे इन नयनों से निरखूं छवि को, भाग जगे जो केवट मैं बनूं।।

केवट ही बनुं श्री चरणों में, यह अभिलाषा है मेरे मन की।

अश्रु से पखारू श्री चरणों को, मेरे भाग जगे जो केवट ही बनूं।।

जो मिल जाए मेरे प्रभु पथ में, उनको तो बिठालूं हृदय के रथ में।

मैं प्रेम सहित निहारूं श्री चरणों को, भाग जगे जो केवट ही बनूं।।

मुझे मोह नहीं जग के वैभव का, जो आज मिले कल मिट जाए।

अनुराग बढे छन -छन श्री चरणों में, मेरे भाग जगे जो केवट ही बनूं।।

है सत्य नहीं सब व्यर्थ यहां, जीवन के लौकिक कर्म अकारण है।

मेरे अनुराग लगे श्री चरणों में, मेरे भाग जगे जो केवट ही बनूं।।

जो प्रेम गति मिला गिद्ध अजामील को, ऐसा भी कोई चाह नहीं।

मैं उठ नित ही निहारूं श्री चरणों को, मेरे भाग जगे केवट ही बनूं।।

क्या होगा करम गति का लेख यहां, माया ने जग बाजार लगाई है।

मैं पल-पल को गुजारूं श्री चरणों में, मेरे भाग जगे केवट ही बनूं।।

 

 

 

 

 


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मदन मोहन'मैत्रेय'