सपने, आए इंद्र धनुष से' सतरंगी' - ZorbaBooks

सपने, आए इंद्र धनुष से’ सतरंगी’

सपने, आए इंद्र धनुष से’ सतरंगी’

इच्छाओं का, जिसमें समुचित प्रतिसाद हो’

जो जीवन पुष्प से गूंथा हुआ आबाद हो’

विजय के स्वर का बजता प्रबल निनाद हो’

दिवास्वप्न आए पलकों पर’ मानव बनने को’

जीवन पथ पर बढ़ जाऊँ, इच्छित करने को।।

 सपने’ जो निर्मल हो’ सहज समझ में आए’

आए जो जागे पलकों पर, मानक धर्म सिखाये’

जीवन रस से सराबोर’ ज्ञान सुधा बरसाये’

दिवास्वप्न हो ऐसा, जो नीति के पाठ पढ़ाये’

सही राह बताये, अनुगामी जीवन का बनने को’ 

जीवन पथ पर बढ़ जाऊँ, इच्छित करने को।।

सपने, हो दिव्य ज्योत’ पथ प्रकाशित कर दे

समताओं का पाठ, अनुवाद सहित बतलाये’

अनुभव का दे स्नेह लेप, जीवन के साथ लगाये’

मानक मूल्यों का वह श्रद्धेय भाव जगाने आए’

उत्प्रेरित करें सहज ही दीपक सा जलने को’

जीवन पथ पर बढ़ जाऊँ, इच्छित करने को।।

सपने जो’ आकर मन से द्वंद्व का धुंध हटा दे’

उन्मुक्त भाव जीवन का, अनुगामी बन जाऊँ’

पथिक के नियमों को जान, निर्मल प्राणी बन जाऊँ’

जीवन के संग करने को अनुबंध, ज्ञानी बन जाऊँ’

मन बिंदु पर भावनाएँ, उठे नहीं छलने को’

जीवन पथ पर बढ़ जाऊँ, इच्छित करने को।।

सपने जो’ सहज ही लिपटा हो प्रेरणा रस में’

किंचित चिन्ताएँ मन की, अब नहीं जागने पाये’

पथ पर हूं, भ्रम का भय किंचित नहीं सताये’

अवसाद जो अहं का, नहीं लंका सी आग लगाये’

सपने हो अपना सा’ जो प्रेरित करें जगने को’

जीवन पथ पर बढ जाऊँ, इच्छित करने को।।

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मदन मोहन'मैत्रेय'