सम और विषम की दो धाराओं पर…….
सम और विषम की दो धाराओं पर।
टिका हुआ है, समय चक्र का चलना।
कभी तो मुक्त भाव से बहता समीर।
कभी तो” तीक्ष्ण ताप में जलना।
दोनों ही किनारे अलग, मानव केंद्र में है।
अब तक जो सचेत है पथ पर, वही है नर श्रेष्ठ।।
जिसने भी जीता जीवन में स्वभाव।
मानव बनकर पथ पर सहज भाव से।
जीवन पथ पर चलते थे जो चिन्ह बनाते।
खुद की छवि उकेरते, जीवन के गीत सुनाते।
वह उत्सव का रंग अनेक, मानव केंद्र में है।
अब तक जो सचेत है पथ पर, वही है नर श्रेष्ठ।।
मानव के नैतिक मूल्यों का संवर्धन करते।
सहज ही’ जीवन रस की धारा बन जाते।
जो आगे बढ कर कर्तव्यों का निर्धारण करवाते।
जीवन पथ पर बढते और मानक मूल्य बताते।
भावनाएँ जो निर्मल है सहज, मानव केंद्र में है।
अब तक जो सचेत है पथ पर, वही है नर श्रेष्ठ।।
है उपादान का ज्ञान जिन्हें, वह मानव।
आचरण जिनका मुखरित होकर कहता है।
मानव का हो ध्येय’ पथ पर समान भाव से चलना।
औरो का हित हो’ हृदय में भाव यही पलना।
असीमित ऊर्जाओं का वेग प्रवाह, मानव केंद्र में है।
अब तक जो सचेत है पथ पर, वही है नर श्रेष्ठ।।
सम और विषम दो भावनाएँ, जैसे दो किनारे।
वही सहज है, इन से जो अब तक रहा अछूता।
निर्मलता के संग जो निखरा सहज धवल सा।
कर्तव्यों का हो बोध जिन्हें, है वह मानव अनूठा ।
ज्ञान दीप की लौ प्रज्वलित’ मानव केंद्र में है।
अब तक जो सचेत है पथ पर’ वही है नर श्रेष्ठ।