हर-पल हलचल मचा हुआ है हर तरफ.... - ZorbaBooks

हर-पल हलचल मचा हुआ है हर तरफ….

हर-पल हलचल मचा हुआ है हर तरफ।

अजी हां, दिये गए बातों के बयान से।

अचूक सा, बिना देखे निशाना साध लेना।

निकला हो जैसे तीर साधित हो कमान से।

कहने की बात है, बयान बाजी का बाजार है।

अपनी ही बातें रटने बाले, मानव यहां हजार है।।

कोई सेंकता स्वार्थ की रोटी, बड़े प्रेम से।

कोई बिछाए शतरंज की गोटी, बड़े प्रेम से।

कोई करें अनहोनी बातें, धरम-नेम से।

फिर पुछे बड़ी बात, हालत कुशल- क्षेम के।

उलटी बातें सीधे कहने का बहता बयार है।

अपनी ही बातें रटने बाले, मानव यहां हजार है।।

इसकी टोपी-उसके सिर’ है करामात का काम।

जिनकी पुछ-परछ होवे, उसका ही होवे नाम।

सभी सजाए यहां-वहां, अपनी-अपनी दुकान।

खरीदार दुःखी न होना, ले लेना नया समान।

छल और नीति का अब आपस में हुआ करार है।

अपनी ही बातें रटने बाले, मानव यहां हजार है।।

तिकड़म का है खेल, यहां अजब भिड़ाते पेंच।

जिसकी जितनी ताकत, उतना मिलता भेंट।

सब की वाणी अलग-अलग, समय से होते सेट।

पूछताछ होता उनका है, जिनके होते ज्यादा रेट।

मानवता जो कभी था पहले, अब लगता बीमार है।

अपनी ही बातें रटने बाले मानव यहां हजार है।।

सही-गलत की सीमाओं से अलग, दिखने को बेताब।

बातें ऐसी कहते जैसे लाएंगे कोई नया इनकलाब।

ढोंग बनाते जन रक्षक की, लाएंगे नया बदलाव।

पद की दावेदारी बिठा-बिठा, लगाते सही हिसाब।

जो भ्रांतियां मन कुंठित कर दे, उसका हुआ फैलाव है।

अपनी ही बातें रटने बाले, मानव यहां हजार है।।

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मदन मोहन'मैत्रेय'