श्रृतुंजा......(Friend are forever) - ZorbaBooks

श्रृतुंजा……(Friend are forever)

श्रृतुंजा! 

हां, उसका यही नाम था और नाम के अनुरूप ही उसका स्वभाव भी। हंसमुख और मिलनसार स्वभाव का श्रृतुंजा नाम के अनुरूप ही सुंदर भी था। 

कमानीदार काली भंवें, बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें और सुर्ख पतले गुलाबी होंठ, उसपर काले घने-घुंघराले बाल। साथ ही सुराहीदार गर्दन और आकर्षक कद-काठी। उसके शरीर की बनावट और सुंदरता ऐसी थी कि” साक्षात काम देव सा लगता था। ऐसे में काँलेज की लड़कियां उसके आगे-पीछे डोलती रहती थी।

परंतु….आज-कल उसको उदासी ने घेर लिया था, क्योंकि’ उसका मित्र भार्गव उस से नाराज चल रहा था। बस’ भार्गव अगर उससे नाराज हो जाये, तो उसको चैन कैसे आ सकता था?…हां, यह कहना ज्यादा उचित होगा कि” उन दोनों के बीच दोस्ती इतनी गहरी थी कि” दोनों दो-जिस्म, एक जान के समान थे। 

परंतु….अचानक ही उसने ऐसी गलती कर दी थी, जिसके कारण भार्गव उससे दूर होता चला गया था और आज एक महीना होने को आया था, अब तक सामने नहीं आया था। ऐसे में श्रृतुंजा हैरान-परेशान अपने बंगले के लाँन में बैठा हुआ आसमान की रिक्तता को देख रहा था। ठीक उसी तरह उसके हृदय में भी तो रिक्तता ने जगह बना लिया था, भार्गव का स्थान खाली हो जाने के बाद उत्पन्न हुई रिक्तता।

वैसे’ गलती तो उसकी ही थी। काँलेज की सब से हाँट गर्ल माधवी को उसने अचानक ही प्रपोज कर दिया था, इतना ही नहीं, एक दिन में ही प्रपोज और उसी दिन शाम को उसको होटल में ले गया था, जहां पर दोनों ने जिस्मानी संबंध बनाये थे। वैसे’ श्रृतुंजा की तो आदत थी, जिस्मानी संबंध बनाने की। अमीर बाप का लड़का होने के कारण उसके पास पैसे की कमी नहीं थी, अतः उसका अधिकतर शाम अय्याशी में गुजरता था।

किन्तु’ उससे भूल बस इतना ही हो गया कि” माधवी को भार्गव शायद चाहने लगा था और जब दोनों हम-बिस्तर हो रहे थे, उसने अपनी आँखों से देख लिया था। बस’ इस वाकया को उसने धोखा समझ लिया। इसके बाद से ही वह उसके सामने ही नहीं आया था।

परंतु…श्रृतुंजा जानता है कि” उसके मन में अपने दोस्त को धोखा देने की इच्छा बिल्कुल भी नहीं थी। अगर उसे मालूम होता कि” माधवी को उसका दोस्त चाहता है, उसके आस-पास अपनी छाया भी पड़ने नहीं देता। वैसे भी, वो मुक्त मन के भंवरे जैसा स्वभाव रखता है। जैसे भंवरा कलियों का मकरंद चूमने के बाद आगे बढ़ जाते हैं, उसी तरह से वो भी है। जिस लड़की के साथ एक बार रात बिता ली, अगले दिन उसके चेहरे को भूला दिया।

परंतु….जब से उसका दोस्त भार्गव उससे नाराज हुआ है, उसके मन की वे तमाम इच्छाएँ, उसका स्वच्छंद व्यवहार, खुद उसको ही चुभने लगा है। तभी तो महीने भर से वो अपने इस बंगले से बाहर ही नहीं निकला हैं, संबंध बनाने के लिये जिस्म की तलाश करना दूर की बात हैं।

श्रृतुंजा बेटा!…क्या सोच रहे हो?…वह जब इस तरह से विचारों में उलझा हुआ था, तभी उसके पापा आदिनाथ सिंह ने वहां कदम रखा। उन्होंने जब देखा कि” श्रृतुंजा विचारों के जाले में उलझा हुआ है, उन्होंने उसको संबोधित कर के बोला, फिर उसकी ओर बढ़े। जबकि’ उनकी बातें सुनकर श्रृतुंजा की तंद्रा टूटी। साथ ही उसने महसूस किया कि” उसकी आँखों में आँसू की बुंदे हैं। झट उसने अपने हाथों से छलके हुए आंसू को पोंछा और धीरे से बोला।

पापा!….आप जैसा सोच रहे हैं, ऐसा कुछ भी नहीं है। बस’ यूं ही अकेला बैठा हुआ था तो…..। इसके आगे श्रृतुंजा एक शब्द भी बोलने की हिम्मत नहीं जुटा सका। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद’ आदिनाथ सिंह एक पल के लिये सोच में डूब गये। उनका आकर्षक व्यक्तित्व अचानक ही गंभीरता के आवरण में ढंक गया। उन्हें स्पष्ट महसूस हुआ कि” कोई तो बात हैं, तभी तो बोले।

बेटा!…मैंने इस दुनिया को बहुत करीब से देखा है, इसके तौर-तरीके को समझा है। ऐसे में कह सकता हूं कि” कोई तो बात है, जो तुम्हें अंदर ही अंदर खाये जा रही है। अन्यथा तो’ महीने भर से इस तरह गुमसुम होकर इस बिला में कैद नहीं हो जाते तुम। 

कहा आदिनाथ सिंह ने और श्रृतुंजा का धैर्य जबाव दे गया। फिर तो वो रो-रो कर सारी बातें बतलाने लगा, साथ ही अपनी गलती स्वीकार करने लगा और अचानक ही उसने हिचकी ली, इसके बाद बेहोश होकर लाँन में ही लूढ़क गया।

बस’ एक पल के लिये तो जैसे आदिनाथ सिंह बौखला ही गये। परंतु….तुरंत ही उन्होंने खुद को संभाला। इसके बाद उन्होंने श्रृतुंजा को उठाया, कार में डाला और लेकर हाँस्पिटल पहुंच गये। इसके बाद’ इलाज का सिलसिला शुरु हुआ। किन्तु’ आदिनाथ सिंह और उनकी धर्मपत्नी मालती सिंह, दोनों ही अचानक उत्पन्न हुए इस परिस्थिति से घबरा गये थे।

उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि” अचानक ही ऐसा क्या हुआ कि” उनके आँखों का तारा इस तरह से संकट में घिर गया। बीतता हुआ पल और आँखों ही आँखों में जागकर उन्हें तीन दिन बीता दिया और जब अगली सुबह श्रृतुंजा को होश आया। आदिनाथ सिंह और श्रीमति सिंह उसके बेड पर ही बैठे हुए थे, परंतु… श्रृतुंजा की नजर तो शून्य में टिकी थी। 

तभी हाँस्पिटल के उस रूम में भार्गव ने प्रवेश किया। उसके साथ माधवी तो थी ही, एक और भी सुंदर लड़की थी। परंतु…श्रृतुंजा को लड़कियों से कोई मतलब नहीं था। उससे मिलने के लिये भार्गव आ गया है, बस यही काफी था। तभी तो’ भार्गव से लिपट कर वो बहुत देर तक रोया। इतना रोया कि” भार्गव के कपड़ों को भीगो दिया। इसके बाद’ जब उसका मन हल्का हुआ, भार्गव बोल पड़ा। 

श्रृतुंजा!….अब तुम्हें समझ आ गया रिश्तों का महत्व?

मतलब नहीं समझा मैं तुम्हारा?…श्रृतुंजा अपने आँसुओं को पोंछते हुए बोला। जबकि’ भार्गव के होंठों पर उसकी बातें सुनकर एक पल के लिये मुस्कान चमकी। इसके बाद उसने श्रृतुंजा के चेहरे को देखा और गंभीर स्वर में बोला।

श्रृतुंजा!…तुम जो माधवी को देख रहे हो न, यह मेरी मौसी की लड़की है। ऐसे में जब मैंने तुम्हें इसके साथ गलत करते देखा, एक पल के लिये भयभीत हो गया। जानता था कि” तुम भंवरा प्रवृति के हो, अगले ही दिन माधवी से दूरी बना लोगे। कहा भार्गव ने और एक पल के लिये रुककर श्रृतुंजा की आँखों में देखा और इसके बाद आगे बोला।

बस’ इसके बाद तुम माधवी को धोखा नहीं दे सको और उसको अपना लो, इसके लिये तुम्हें सबक सिखाना जरूरी था। बस’ मैंने माधवी के संग अफेयर” की बात फैला दी और तुमसे नाराज हो गया।

अच्छा!…तो तुमने जानबूझकर यह सब किया था?….भार्गव की बातें सुनकर श्रृतुंजा मद्धिम स्वर में बोला। जबकि’ उसकी बातें सुनते ही भार्गव ने दूसरी लड़की की ओर इशारा किया और मुस्करा कर बोला।

हां यार!…वो देखो मेरी मुहब्बत यामिनी। जिसके साथ दो वर्ष से मुहब्बत में हूं और जल्द ही हम दोनों ब्याह भी कर लेंगे।

साँरी यार!…अब ऐसी गलती नहीं करूंगा। भार्गव की बातें सुनते ही श्रृतुंजा ने दोनों हाथों से अपने कान को पकड़ कर बोला। इसके बाद’ इशारे से माधवी को पास में बुला लिया और उसके हाथों को अपने हाथ में लेकर आगे बोला।

यार भार्गव!…तुमने मेरी आँखें खोल दी है। अब विश्वास करो, अपनी गलती सुधार लूंगा और माधवी का साथ जीवन भर के लिये निभाऊँगा। कहा श्रृतुंजा ने और उसके आँखों की निश्छलता देखकर वहां मौजूद सभी को विश्वास हो गया कि” श्रृतुंजा बदल चुका है। तभी तो कुछ पल पहले तक उदासी में लिपटा हुआ हाँस्पिटल रूम अचानक ही खुशियों से भर गया।

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मदन मोहन'मैत्रेय'