Description
गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन संगम तट पर बसी प्रयाग नगरी, जो सामाजिक आस्था का प्रतीक है। जिसे तीर्थराज के नाम से जाना जाता है, का अपना अनोखा महत्व है। प्रयाग भारत की पौराणिक, सांस्कृतिक धरोहर के साथ धार्मिक आस्था एवं सद्भाव को भी प्रदर्शित करता है। प्रयाग में भारद्वाज ऋषि का आश्रम है, जहां वनगमन के समय मर्यादा पुरूषोत्तम राम ठहरे थे, ऐसी धार्मिक मान्यता है।
प्रयाग के इस महाकुम्भ PRAYAG MAHAKUMBH में संगम में स्नान हेतु लगभग 7 करोड़ श्रद्धालु सम्पूर्ण मेलावधि के समय यहाँ पधारे। इन सभी ने भारतीय संस्कृति एवं परम्परा का संदेश सम्पूर्ण विश्वपटल पर रखा, जो सिद्ध करता है कि हम भारत के लोगों की एकता एवं संस्कृति के प्रति जागरूकता एवम श्रद्धा का आदरभाव। अनन्तकाल से तीर्थयात्रियों की यह अटूट और असंख्य भीड़ प्रयाग आकर गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर इस विश्वास के साथ डुबकी लगाती आ रही है कि ऐसा करने से जीवन मरण के आवागमन से मुक्ति मिलेगी और अमरत्व की प्राप्ति होगी।
लेखक ने जिस बारीकी से विभिन्न अध्यायों के माध्यम से सम्पूर्ण कुम्भ PRAYAG MAHAKUMBH की घटनाओं को उजागर किया है वह सचमुच पाठकों के प्रसन्द आयेगी।
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