Description
कविताओं की किताब
अंग्रेज़ों से तो आज़ादी हमने सन 1947 में थी पाली,
पर जब अपने ही लगें लूटने तो कौन करता हमारी रखवाली ?
उस १५ अगस्त की रात को छूटी थी ख़ुशियों की आतिशबाज़ी,
यूनियक जैक को हटा कर, तिरंगे ने थी मारी बाज़ी
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लेखक के बारे में
चाँदनी चौक के जन्मे अशोक लाल ने अपना व्यवसायिक जीवन मुम्बई में एक एयर क्राफ़्ट इनजिनियर रहकर बिताया।
वह आसपास की देखी व महसूस की गई घटनाओं को कविता के रूप में प्रकट करते रहे ।उनकी कविताओं में थोड़ा हास्य,व्यंग्य ,और दार्शनिकता झलकती है।
उनकी पत्नी होने के नाते उनकी काल्पनिक विचारों को कविता के रूप मे ढालने में मेरा पूरा सहयोग रहा। अनेक पन्नों पर लिखे उनके विचारों को कम्प्यूटर पर लिखकर सम्भालना मेरा शौक़ रहा। और आज मैं इस शौक़ को इस कविताओं की किताब के माध्यम से सभी प्रशंसक तक पहुँचा रही हूँ।
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