Description
पादप रोग विज्ञान का संक्षिप्त इतिहास
एवं पौध रोग प्रबंधन
पौध रोग पहचान एवं प्रबंधन हेतु सचित्र दिग्दर्शिका
धरती के समस्त जीवों की इतिहास कथा उनके चारो ओर व्याप्त दृश्य और अदृश्य जीवों से संघर्ष के इतिहास पर आधारित रही है। पौध प्रजातियों और सूक्ष्मजीवों के बीच संघर्ष का इतिहास पृथ्वी पर मनुष्य की उत्पत्ति से भी अधिक प्राचीन है। डेवोनियन काल (3950-3450 लाख वर्ष पूर्व) के समय के मिले हुए परजीवी कवकों के जीवाश्म अभिलेख यह इंगित करते हैं कि पौधों पर कवकों के संक्रमण का युग पौधों के पृथ्वी पर उत्पत्ति के साथ ही शुरू हो गया था। प्राचीन समय में पौधों में उत्पन्न रोगों का कारण ईश्वरीय क्रोध को माना जाता था। एंटोनी वॉन ल्यूवेन्हॉक ने सूक्ष्मजीव जगत की खोज करके एक नई वैज्ञानिक क्रान्ति की शुरूवात की पर बहुत से वैज्ञानिक सूक्ष्मजीवों की उत्पत्ति स्वतः जनन को मानते थे तथा वैज्ञानिकों में एक मिथ्या भरी अवधारणा थी कि रोगी पौधों पर उत्पन्न सूक्ष्मजीव रोगों के परिणाम होते है,कारण नहीं। वर्ष 1845-49 की अवधि में आलू के पछेती झुलसा रोग के कारण आयरलैण्ड में हुए अकाल,भुखमरी और मनुष्यों के विस्थापन ने पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया। आयरिश अकाल के कारण लगभग 10 लाख लोग भुखमरी के शिकार हुए तथा लगभग 10 लाख से अधिक लोगों ने आयरलैण्ड छोड़कर किसी अन्य देश में शरण ली। आयरिश अकाल की भीषण त्रासदी के कारण पौध रोगों के कारणों और उनके नियंत्रण पर नये सिरे से वैज्ञानिक खोज की शुरूवात हुई। एन्टोन डी बैरी ने आलू के आयरिश झुलसा रोग पर अध्ययन करके यह बताया कि यह एक कवक जनित रोग है और रोगजनक सूक्ष्मजीव पौध रोगों के कारण होते है,न कि रोगों के परिणाम। वर्तमान समय में पादप रोग विज्ञान अपने आधुनिक दौर में है,और वैज्ञानिकों ने पौध रोगजनकों में रोगजनकता तथा बहुत सी पौध प्रजातियों में रोगरोधिता जीन्स की खोज कर ली हैं,पर इस दौर में भी रोगजनक सूक्ष्मजीव अपने जेनिटिक कोड में लगातार परिवर्तन करने के कारण पौधों के रोगरोधी जीन्स की अभिक्रियाओं का संहार करते हुए पौधों के संक्रामक शत्रु बने हुए हैं। विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या की उदरपूर्ति के लिये सूक्ष्मजीव रोगजनक एक वैश्विक खतरा बनते जा रहे हैं और मनुष्य पौधों और रोगजनकों के बीच युद्व में पौध प्रजातियों के प्रबल रक्षक की भूमिका में हैं। अब यह एक यक्ष प्रश्न है कि आने वाली सदियों में मनुष्य पौध प्रजातियों को रोगों से सुरक्षित करके बढ़ती हुई जनसंख्या के उदर पोषण के लिये खाद्यान्न उपलब्ध करा पायेगा या पौध रोगजनक आयरिश एवं बंगाल अकाल की तरह फिर से किसी भयानक भूखमरी और कुपोषण को जन्म देगें?
यह पुस्तक जहाँ एक ओर पादप रोगों के खिलाफ सहस्राब्दियों से संघर्ष कर रहे मनुष्य के प्राचीन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की व्याख्या करती है,वहीं दूसरी तरफ पौध रोगों की पहचान और उनके प्रबंधन पर प्रकाश डालती है।
लेखक के बारे में
डा0 धर्मेन्द्र कुमार ने सूक्ष्म जीव और पादप रोग विज्ञान में अपनी उच्च शिक्षा बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणसी और स्वीडन के लुण्ड विश्वविद्यालय से प्राप्त की है। लेखक आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, अयोध्या में 10 वर्षों तक शोध और शिक्षण कार्य करने के बाद वर्तमान समय में बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बाँदा के पादप रोग विज्ञान विभाग में ऐसोसिएट प्रोफेसर हैं। एक पादप रोग वैज्ञानिक के रूप में डा0 धर्मेन्द्र कुमार ने राष्ट्रीय और अन्र्तराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिकाओं में कई शोध पत्र प्रकाशित किये हंै। डा0 कुमार को डी0एस0टी0 बायसकास्ट फेलो एवार्ड, एम0के0पटेल मेमोरियल यंग साईन्टिस्ट एवार्ड, डिस्टयूगिस्ट साइंटिफिक एवार्ड तथा एक्सीलेंस इन टीचिंग एवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। डा0 कुमार को विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्र्तराष्ट्रीय सेमिनारों में उनके शोध व्याख्यानों के लिये भी कई बार पुरस्कृत किया जा चुका है। लेखक एक शिक्षक और वैज्ञानिक के साथ ही अपने आपको अन्र्तमन का एक खोजी मानते हैं। यही खोज उनको लेखन की दुनिया में लायी है। अपनी पुस्तक ’एक लम्हे का ख्वाब‘ और देवव्रत के प्रकाशन के बाद यह लेखक की तीसरी पुस्तक है।
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